भारत के किसान: संघर्ष और संभावनाएं
रामहेत पवार
भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले किसान, देश की विशाल आबादी का पेट भरने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। उनका जीवन प्रकृति से गहरे जुड़ाव और अनगिनत चुनौतियों से भरा है।
1. मौसम की मार
भारतीय कृषि मूल रूप से मॉनसून पर निर्भर करती है, जिससे किसान हर साल अनिश्चितता के चक्र में फँसे रहते हैं। कभी अत्यधिक वर्षा और बाढ़ खड़ी फसलें नष्ट कर देती है, तो कभी सूखा और अपर्याप्त बारिश खेत को बंजर बना देती है। बेमौसम ओलावृष्टि और चक्रवात जैसी आपदाएं भी फसल को भारी नुकसान पहुँचाती हैं, जिससे किसानों की महीनों की मेहनत और निवेश बर्बाद हो जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का यह मिजाज और भी अप्रत्याशित हो गया है, जिससे किसानों के लिए समय पर बुआई और कटाई का निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है। इस मौसम की मार के कारण फसल बीमा योजनाओं का लाभ भी कई बार कागजी जटिलताओं में उलझकर रह जाता है, जिससे किसान अक्सर भारी कर्ज में डूब जाते हैं।
2. किसान की वर्तमान स्थिति
आज भी, भारत के अधिकांश किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास सीमित जोत (खेती की जमीन) है। बढ़ती लागत और कम लाभ के कारण उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर बनी हुई है। कृषि के लिए बीज, उर्वरक और डीजल जैसे इनपुट की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जबकि उनकी उपज का उचित मूल्य अक्सर नहीं मिल पाता है। कर्ज का बोझ एक बड़ी समस्या है, जिससे कई किसान आत्महत्या तक कर लेते हैं। ग्रामीण बुनियादी ढांचे की कमी, जैसे कि खराब सड़कें और अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ, उन्हें अपनी उपज को लाभकारी बाजार तक पहुँचाने से रोकती हैं। सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाने के बावजूद, उनका लाभ निचले स्तर तक पूरी तरह से पहुँच नहीं पाता है, जिससे किसान आधुनिक तकनीक और बेहतर जीवन स्तर से वंचित रह जाते हैं।
3. आज की फसलों के भाव
फसलों के अस्थिर और कम भाव किसानों की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक हैं। उत्पादन की लागत बढ़ जाने के बावजूद, उन्हें अपनी उपज का उचित और लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाता है। बिचौलिए अक्सर किसानों से कम दामों पर फसल खरीदते हैं और उसे उपभोक्ताओं को ऊँचे दामों पर बेचते हैं, जिससे किसान को वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता। सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था हर फसल के लिए प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाती है, और कई बार मंडियों में MSP से भी नीचे के भाव पर बिक्री करनी पड़ती है। उत्पादन अधिक हो जाने पर बाजार में कीमतें गिर जाती हैं, जिसका सीधा नुकसान किसान को होता है। कीमतों में यह अनिश्चितता किसान की निवेश क्षमता और अगली फसल की योजना को बुरी तरह प्रभावित करती है, जिससे वे आर्थिक रूप से असुरक्षित महसूस करते हैं।
4. किसान के परिवार की स्थिति
किसान की आर्थिक तंगी का सीधा असर उनके परिवार की स्थिति पर पड़ता है। आय की अनिश्चितता के कारण, वे अपने बच्चों को उच्च-गुणवत्ता वाली शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने में असमर्थ होते हैं। कई ग्रामीण क्षेत्रों में, किसान परिवार अभी भी बुनियादी सुविधाओं जैसे साफ पानी, बिजली और उचित आवास से वंचित हैं। कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण होती है, लेकिन उन्हें अक्सर दोहरा बोझ (घर और खेत दोनों का काम) उठाना पड़ता है, जिससे उनकी स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिति प्रभावित होती है। युवा पीढ़ी, कृषि में भविष्य की कमी को देखते हुए, शहरों की ओर पलायन कर रही है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम की कमी हो रही है और कृषि क्षेत्र का भविष्य भी प्रभावित हो रहा है।
5. सिंचाई की अव्यवस्था
भारत में कृषि के लिए सिंचाई एक जीवन रेखा है, लेकिन इसकी अव्यवस्था किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती है। आज भी एक बड़ा हिस्सा सिंचाई के लिए मॉनसून पर निर्भर है। जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं, वहाँ भी जल वितरण की असमानता एक समस्या है। पुरानी और टूटी हुई नहर प्रणालियाँ, भूजल का अत्यधिक दोहन और बिजली की अनियमित आपूर्ति सिंचाई को महँगा और अविश्वसनीय बना देती है। छोटे किसानों के लिए आधुनिक सिंचाई तकनीकें, जैसे कि ड्रिप या स्प्रिंकलर, महँगी होती हैं। सिंचाई की अव्यवस्था के कारण किसान केवल ऐसी फसलें उगाने को मजबूर होते हैं जिन्हें कम पानी की आवश्यकता होती है, भले ही बाजार में अधिक पानी वाली फसलों की मांग और भाव अच्छे हों। प्रभावी जल प्रबंधन और जल संचयन (Water Harvesting) संरचनाओं की कमी से किसानों की जोखिम वहन क्षमता कम हो जाती है।
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