प्रदेश में पशुधन का लावारिसपन
पीएस राजपूत
हरदा।एमके न्यूज। सनातन में गाय को माता मानकर पूजा की जाती है। यही नहीं यह भी माना जाता है कि गाय में छत्तीस करोड़ देवी देवता विराजते हैं। यह सब बातें उस समय देखकर आस्था पर भ्रम हो जाता है जब सड़कों पर लावारिश होकर पशुधन का समूह अपने बछड़ों के साथ बारिश ठंड गर्मी में सहारा ढूंढकर किसी पेड़ की छांव धूप में सड़क चौराहों पर समूह में बैठे देखते हैं। पर
प्रायः यह देखा और अनुभव किया बात जब तक दुध देती है तब तक वह माता ।जब दूध देना बंद कर देती है तब लावारिश होकर सड़क पर क्यों? इस बात पर प्रत्येक को विचार करना चाहिए।
वैसे तो सरकार की तरफ से पशुधन संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाए हैं जिसमें से एक गौ पशुधन संवर्धन बोर्ड है जिसके मातहत सैकड़ों गौशालाएं कार्य कर रही हैं। वर्तमान में लावारिश पशुधन की संख्या बढ़ रही है उससे लगता है कि गौशालाएं गौण हो ग ई हैं। इन गौशालाओं को हर साल पशुधन संख्या के आधार पर आर्थिक सहायता देने का प्रावधान है।
हालांकि प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा पशुओं संरक्षण के लिए नित नये प्रयोग किए हैं जिनमें एक हैं पशुधन संगणना अर्थात उनकी गिनती। इसमें किसका पशु ग्राम जिला एवं शब्द का समावेश होता है। इन सारी जानकारियों का कमयूटराइड एक टेगतैयार किया गया है जो पशुधन के कान पर लगा दिया जाने का प्रावधान है। पशु संगणना का मूल उद्देश्य है कि इससे चोरी लावारिश होने की स्थिति में पशुमालिक सुलभ तरीके से ऐसी प्रवृति पर अंकुश लगाया जा सके।
भारत विविधताओं का देश हैं। यहां माना जाता रहा कि कानून बाद में बनता है पर उसके तोड़ने के तौर तरीके पहले ईजादहो जाते हैं। ऐसा ही पशू संगणना का हश्र होता हुआ दिख रहा है। पशुओं के समूह में एक ही पशुधन के कान में यह tag नहीं रहता। इसके पीछे का कारण यही है कि जब गाय ने दूध देना बंद किया उनके पहचान के निशान निकालकर एक गांव से दूसरे गांव की सड़क पर छोड़ देते हैं। पशुपालक में ऐसी प्रवृति पनपने का मुख्य कारक यह हो सकता है जगह का अभाव। आज परिवार बढ़कर विभाजित होकर जगह घटती जा रही है।
दूसरी ओर प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसमें गाय गोबर मूत्र का महत्व है। इसके लिए सरकार की तरफ से छोटे किसानों को एक गाय अनुदान पर दी जा रही है। क्या दूध देना बंद करने के बाद यह बात भी लावारिश कहलायेगी। यह विचारणीय पहलू है। इसके पहले भी गोकुल ग्राम योजना में गाय दी थी। आज इस योजना और उसकी बात कही को याद नहीं है।
लिहाजा सरकार पशुधन संवर्धन के लिए कितना भी प्रयास करें जब तक पशुपालक और अन्नदाता पशुधन के प्रति पूरी तरह जागरुक होकर परिवार का सदस्य मानने की आवश्यकता है तभी लावारिश पशुधन पर निजात मिल सकेगा।
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