साइंस जर्नलिज्म में रोजगार की अपार संभावनाएं: प्रो. डॉ. राखी तिवारी
डॉ अनवर खान
भोपाल। 12वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया के कार्यक्रम में पैनल डिस्कशन के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ राखी तिवारी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विज्ञान हमारे मन मस्तिष्क में हिलोरे ले रहा है। घर-घर विज्ञान और हर घर विज्ञान की चेतना को अनुप्राणित करने के उद्देश्य से हम सब यहां उपस्थित हुए हैं। हम सब ने फिल्म देखी है। हर फिल्म समाज में बड़े ही गहरे प्रभाव को उत्पन्न करती है। उन्होंने आगे अपनी बात को रखते हुए मार्वल फिल्म का जिक्र करते हुए बताया कि महान शक्ति के साथ बड़ी जिम्मेदारियाँ आती है और महान शक्ति है विज्ञान की शक्ति। पिछले कुछ शताब्दियों में विज्ञान ने मानवीय जीवन को नए नए आविष्कार और तकनीक से बदल दिया है। सबसे बड़ा बदलाव सूचना संचार तकनीक में हुआ है। डॉ. तिवारी ने साइंस कम्युनिकेशन की उपयोगिता को जीवन में अपनाने के लिए कई आयामों की जानकारी दी। साइंस कम्युनिकेशन इन मीडिया स्टडीज की हम यहां बात कर रहे हैं, जिसे नाकारा नहीं जा सकता है। कोरोना महामारी के समय में डिजिटल मीडिया पर बहुत से असत्य इन्फॉर्मेशन समाज में फैली थी। डिजिटल मीडिया ताकत है हर आम व्यक्ति के लिए तो उस आम व्यक्ति को उसका सदुपयोग भी सिखाना जरूरी हो जाता है। यह डिजीटल मीडिया और साइंस कम्युनिकेशन के प्रभावी उपयोग से ही सफल हो सकता है। यह दायित्व उन पीढ़ी पर ज्यादा है जो मीडिया शिक्षा से जुड़े हैं। वहीँ नई शिक्षा नीति विद्यार्थियों में डाइवर्स थिंकिंग को विकसित करती है। विद्यार्थियों ने अपने इच्छा के अनुसार विभिन्न विषयों को इस नीति के अनुसार पढ़ रहे हैं, और इस दिशा में विभिन्न मीडिया संस्थान भी आगे आ सकते हैं और साइंस कम्युनिकेशन को एक हथियार बनाएं।
डॉ तिवारी ने साइंस जर्नलिज्म की उपयोगिता के बारे में बताते हुए कहा कि माखनलाल विश्वविद्यालय में साइंस कम्युनिकेशन का कोर्स संचालित था। जिससे निकले विद्यार्थी विज्ञान कम्युनिकेशन विषय से संबंधित निकल रहे है और मैग्ज़ीन में सम्पादक के पद पर कार्य कर रहे हैं।
युवा वर्ग चाहते भी हैं कि विज्ञान के फिल्ड में सकारात्मक काम हो, क्योंकि वे विज्ञान की चेतना से अभिभूत भी हैं और वे चाहते हैं कि वे समाज को सभ्य समाज में बदलें, सभ्य समाज में रूढ़ियां, पूर्वाग्रह और किसी भी प्रकार के अंधविश्वास पैर न पसार सके। यह डिजिटल पावर से बहुत आसानी से सम्भव हो सकता है। यह तभी संभव हो सकता है जब साइंस के विषय और समस्याओं को विद्यार्थियों में साझा करेंगे।
बहुत सारा प्रयास इस साइंस फिल्म फेस्टिवल में हो भी रहा है, लेकिन हमे कुछ और प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि क्यों न हर युवा विज्ञान के लोकव्यापीकरण और उसके चेतना के प्रचार प्रसार के लिए जब भी उसके मित्र का जन्मदिन हो, उस दिन यह संकल्प ले कि वह अपने मित्र को विज्ञान की पुस्तक भेंट करे।
इस देश में ऐसा क्या ख़ज़ाना है जो हमारे देश में नहीं है । एक संकल्पना है, यथा पिंडे तथा ब्राह्मंड। हमारे पिंड में ही समूचा ब्राह्मंड है। क्यों न हर विधार्थी साइंस क्लब का गठन करे और हर विज्ञान दिवस पर उसे उत्साह से मनाएं और अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें। साइंस कम्युनिकेशन को इस देश का युवा हो सकारात्मक बना सकता है। हालांकि मीडिया हाउस को भी इस दिशा में काम करने की जरूरत है। मीडिया हॉउस में साइंस से जुड़े content में सिर्फ प्रौद्योगिकी की ख़बरें होती है , जबकि साइंस बहुत वृहद umbrella है। साइंस कम्यूनिकेशन के प्रचार प्रसार के लिए क्यों न साइंस फिल्ड में रिपोर्टिंग करने वाले को पुरस्कृत किया जाए। विद्यार्थियों को डीआरडीओ और इसरो जैसे संस्थाओं का भ्रमण कराने से भी इस दिशा मे भी एक अनोखी पहल होगी।
इस अवसर पर जागरण प्रबंधन कानपुर के डायरेक्टर उपेंद्र पांडे, नेशनल रिसोर्स और आउटरीच विभाग के मुख्य वैज्ञानिक आर एस जय, जम्मू कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के सहायक अध्यापक बच्चा बाबू सहित अनेक ख्याति प्राप्त हस्तियां मौजूद रही। पैनल डिस्कशन का संचालन बच्चा बाबू ने किया वही कार्यक्रम की अध्यक्षता पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर शंभूनाथ सिंह ने की।
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