जैविक सब्जियां बेचकर गिरवी रखी जमीन छुड़ाई
मध्यप्रदेश के मण्डला जिले के बिछिया विकासखंड अजनिया ग्राम पंचायत की रहने वाली किसान महिला राजकुमारी की सफलता की कहानी खुद की जुबानी...
अनवर खान / भोपाल । मैं एक सामान्य परिवार की गरीब महिला हूं। मेरे परिवार की मूलभूत जरूरतें पूरा करने में पहले मुझे बहुत समस्याएं आती थी। पहले मेरे पास इन बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए कोई वैकल्पिक आजीविका का स्रोत नहीं था। पहले मैं कृषि श्रम या गांव के स्तर में अन्य श्रममिक कार्य और कुछ समय ब्लॉक स्तर पर निकलने वाले श्रमिक का कार्य करती थी। मैं शिक्षित और कुशल नहीं हूं। स्थानीय क्षेत्र में कोई कार्य पाना मुश्किल था। मेरे परिवार की कृषि भूमि नहीं हैं इसलिए मैं पूरी तरह से अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए श्रमिक कार्यों पर निर्भर थे। मेरे तीन बच्चे हैं। इसलिए परिवार की जरूरतों को पूरा करने एवं बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए हर तरह से श्रमिक कार्य या मजदूरी करनी पड़ती थी। मेरे गांव की कुछ महिलाएं स्वसहायता समूह के बारे में जानतीं थीं और कुछ महिलाएं स्वसहायता समूह से जुड़ी भी हैं। जिससे गांव की महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम होने के साथ साथ उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया हैं। जानकारी मिलने पर मैं स्थानीय स्वसहायता समूह निकाय के संपर्क में आई था इसमें शामिल हुईं। दस आरएस बचत के साथ स्वसहायता समूह (एसएचजी) की साप्ताहिक बैठक में पहुंचीं और बैठक में गांव की संसाधन की उपलब्धता और गांव के स्तर पर आजीविका के शिविर के आधार पर आजीविका विकास के बारे में चर्चा कर रही थी। साप्ताहिक बैठक में चर्चा होती थी कि हमारे गांव को सभी बारह महीने और 365 दिनों में ग्रामीणों की हरी सब्जी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए ताजी सब्जियों की आवश्यकता है। इसलिए स्वसहायता समूह की सभी महिलाओं ने जैविक सब्जी की बारे में जानकारी ली और एक दूसरे को बताया। जिन महिलाओं को आर्थिक समस्याएं अधिक थी तो उसे स्वसहायता समूह द्वारा आर्थिक मदद की जा रही थी। मैंने भी समूह की सदस्यता ली और उसकी मदद से सब्जी समूह से खरीदकर बाजार में बेचना शुरू किया। इसके लिए इंदिरा गांधी महिला स्वसहायता समूह द्वारा शुरू में मेरी 4000 राशि की मदद की गई। अब में इन 4000 हजार रूपए की लागत से 6000 रूपए फूटकर हरी जैविक सब्जी बाजार में बेचकर कमाती हूं।
इससे मेरे परिवार के पति एवं अन्य पुरूषों की धारणा बदली की मैं महिला होते हुए भी कमा सकती हूं। अब में थोड़े ही समय में हरी सब्जियों की बिक्री से काफी मुनाफा कमाने लगी हूं। इससे प्राप्त होने वाली बचत से पूरा लोन भी चुका दिया।
व्यवसाय को बढ़ाने कई बार लोन लिया
मैं अपना व्यवसाया अधिक बढ़ाने के लिए कई बार क्रमशः 30000, 15000, 20000 और 20000 की राशियों का लोन लिया और व्यवसाय बढ़ाया। इसके एक साल बाद मैंने बिछिया में ही एक स्थायी हरी सब्जी की दुकान की नींव रखीं जिसे आज आजीविका फेंस के नाम से जाना जाता है। और लोग मुझे आजीविका वाली दीदी के नाम से पुकारते हैं।
बेटे की बेकरी की दुकान
अपने बेटे को खुद का व्सवसाय करने के लिए राजकुमारी ने फिर से समूह से लोन लिया। चूंकि वह समूह से जो लोन लेती थीं उसे समय पर बराबर जमा करतीं थी। समूह ने उसकी साख को देखते हुए लोन देने से कभी मना नहीं किया था। समूह ने उसके बेटे को बेकरी खोलने के लिए एकमुश्त एक लाख रूपए का लोन दे दिया। बेकरी की दुकान भी क्षेत्र में खूब चलने लगी। वह छह हजार रूपए महीना कमा रहा है।
दोनों बच्चों की शादी सब्जी बेचकर की
राजकुमारी की सब्जी की दुकान इतनी चलने लगे की वह खुद पैरों पर खड़ी हो गई एवं उसने अपने दो बच्चों की शादी भी इससे होने वाली आय से की है।
गिरवी जमीन भी छुड़ाई
पांच साल से सब्जी की दुकान चला रही राजकुमारी के पति की दो एकड़ जमीन कर्ज के कारण गिरवी रखी हुई थी। वह उसे छुड़ा नहीं पा रहे थे। सब्जी की आमदनी से होने वाली बचत के बाद उसने अपने पति की जमीन को भी गिरवी से छुड़ा लिया और अब वह उस खेत में जैविक तकनीक से हरी सब्जी उगाने लगी और अपनी स्थायी सब्जी की दुकान में उसे बेचती हैं। वर्तमान में राजकुमारी 15000 रूपए प्रतिमाह जैविक हरी सब्जियां बेचकर कमा रही हैं।
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