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    आदिवासी जैविक खेती प्रशिक्षण के नाम पर 110 करोड़ का महाघोटाला

    डॉ. अनवर खान, एमके न्यूज

    www.mehnatkashkisan.com

    भोपाल/दिल्ली। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिलों में आदिवासियों को जैविक खेती का प्रशिक्षण देने के नाम पर करोड़ों का महाघोटाला सामने आया है। दरअसल, जैविक खेती को बढ़ावा देने की यह योजना भारत सरकार की थी। मगर राज्य सरकार के आला नुमाइंदों ने स्वार्थ के चक्कर में ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए उक्त योजना के नियमों को बाले-बाले ही बदल डाले और थोड़ा बहुत नहीं बल्कि 110 करोड़ की राशि में गोलमाल हो गया। इस कारस्तानी में मप्र किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग के अफसरानों की मिलीभगत उजागर हुई है। उक्त गबन से संबंधित समस्त कागजात एमके न्यूज के पास मौजूद है।


    क्या है आदिवासी जैविक खेती योजना

    भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016-17 में मध्यप्रदेश प्रदेश के आदिवासियों में जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु रूपये 54 करोड़ स्वीकृत किए। इसी प्रकार विशेष पिछड़ी जनजाति (बैगा, भारिया एवं सहरिया) हेतु रूपए 20 करोड़ स्वीकृत किए। इसके अतिरिक्त राज्य मद से 36 करोड़ दिए गए हैं। भारत सरकार को भेजे गए प्रोजेक्ट में सेसबानिया बीज के स्थान पर सेसबानिया रोस्ट्रेट नामक बीज का नाम शामिल किया गया, जबकि सेसबानिया रोस्ट्रेट नामक बीज भारत में जैविक खेती के लिए भारत सरकार की परम्परागत कृषि विकास योजना की गाइडलाईन में शामिल नहीं है। भारत सरकार से सेसबनिया रोस्ट्रेटा (टेंडर दर 114 रूपये प्रतिकिलो) स्वीकृत कराया गया, जबकि वितरण के समय मंडला जिले में 25 से 30 रूपये किलो मिलने वाला ये बीज बांटा गया। भारत सरकार से दो अलग-अलग राशियाँ 54 करोड़ आदिवासियों के लिए और 20 करोड़ विशेष पिछड़े (बैगा, भारिया, सहरिया) आदिवासियों के लिए मिली थी, जिसका इसका उपयोग अलग-अलग हितग्राहियों के लिए किया जाना चाहिये था। इसमें 36 करोड़ की राशि राज्य मद से भी जोड़ी गई थी। किसानों की सूची में डिंडोरी, अनूपपुर और मंडला मंे दोनों राशियों के विरुद्ध एक ही सूची बनाई गई, जिससे प्रतीत होता है कि एक आदिवासी को लाभान्वित करने के लिए दो जगह भुगतान किया गया है, जो गबन तथा फर्जी सूचियाँ बनाने के अपराध की ओर इशारा करता है। 

    दस्तावेज 

    दिल्ली तक शिकायते, कार्रवाही सिफर

    इस करोड़ों के फर्जीवाड़े की भोपाल से लेकर दिल्ली तक शिकायते ही शिकायते हो रही है मगर जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाही होती दिखाई नहीं दे रही है। जब इस गबन की शिकायत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पास पहंुची तो आयोग द्वारा फर्जी सूची मामले को संज्ञान में लेने के बाद जॉच के लिए मुख्य सचिव मप्र शासन को नोटिस जारी किया गया। जिसके संबंध में कलेक्टर मंडला द्वारा इस प्रकरण को गंभीरता से लिया गया और इसकी बारीकी से जाँच की गई। कलेक्टर की पड़ताल में पाया गया है कि अनेकों ग्रामों के लाभान्वितों की सूची में ब्राम्हण, कुर्मी, लोहार, मेहरा इत्यादि जातियों के व्यक्तियों के नाम भी शामिल होना पाया गया है। इस बात का जिक्र कलेक्टर ने अपनी जांच रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है। आदिवासियों की जगह सामान्य और ओबीसी वर्ग के लोगों को उक्त योजना के लाभार्थी वाली सूची  में  नाम कैसे जोड़ा गया है। 

    इन मासूम हितग्राहियों को जैविक सामग्री का लाभ नहीं मिला और इनको यह भी नहीं मालूम कि इनके नाम लाभान्वितों की सूची में कैसे आए। इससे स्पष्ट है कि झूठी हितग्राही सूची बनाकर राशि का गबन किया गया है। बाद में एक अन्य काल्पनिक सूची बनाकर लीपापोती की गई है। यह फर्जी शासकीय अभिलेख बनाने व उसमें हेराफेरी का मामला है। जाँच दल द्वारा यह जाँच नहीं की गई कि उपसंचालक, कृषि एंव आत्मा परियोजना मंडला के कार्यालय में जो सूची उपलब्ध हैं, उनके हितग्राहियों को जैविक सामग्री प्रदान की गई अथवा नहीं। यदि सामग्री दी भी गई तो क्या-क्या सामग्री दी गई। जांच रिपोर्ट का बिंदु क्रमांक-6 जॉच दल ने बिंदु क्रमांक-6 में 165 हितग्राहियों के नाम पर दो राशियों का आहरण किया जाना सिद्ध पाया गया है। 

    आदिवासियों की जगह सामान्य वर्ग के सूची में नाम

    अगर, मंडला कलेक्टर ने अपनी जांच रिपोर्ट जो दिल्ली में राष्ट्रीय आयोग को भेजी है उसपर बारीकी से नजर डाले तो पता चलता है कि हितग्राही की सूची में सामान्य वर्ग के लोगों के नाम भी शामिल है। जबकि उक्त योजना सिर्फ और सिर्फ आदिवासियों के लिए ही थी। इससे साफ जाहिर होता है कि उक्त जैविक खेती को बढावा देने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की गई और करोड़ों की राशि गोलमाल की गई है।

    ऐसे की फर्जीवाड़े की जैविक खेती

    उक्त योजना में ठेकेदारों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से गाईड लाईन बदली गई जिसके लिए कृषि विभाग के मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारी भी जिम्मेदार है। भारत सरकार से स्वीकृत के पश्चात ठेकेदारों को मदद कर भ्रष्टाचार करने हेतु वर्मी कम्पोस्ट यूनिट के स्थान पर प्रोम खाद तथा जैविक कीट नाशक प्रदाय की स्वीकृति भ्रष्ट तरीके से दी गई ताकि सत्यापन न हो सके। जबकि योजना के तहत आदिवासियों को वर्मी कम्पोस्ट यूनिट बनाने का प्रशिक्षण दिया जाना था। हितग्राहियों को वर्मी कंपोस्ट कैसे बनाते है उसका पूरा-पूरा प्रशिक्षण यूनिट का निर्माण कर दिया जाना था। इस यूनिट के तहत छोट-छोटे वर्मी ईंट और सीमेंट के यूनिट बनाने थे। जिसके तहत पूरा प्रशिक्षण और अन्य कार्य इत्यादि किए जाने थे।  

    रिपोर्ट में खुलासा दोहरा आहरण, दस्तावेजों से छेड़छाड़ की आशंका

    दिलचस्प बात ये है कि जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस योजना के तहत दोहरा आहरण सिद्ध होना पाया गया है। यानी एक-एक बिलों की राशि को दो-दो बार निकाली गई है। इसके बावजूद अभी तक दोषी अधिकारी एवं कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करायी जा रही है। नियम के तहत इस मामले में होना तो यह चाहिए कि सर्वप्रथम अभिलेख जब्त किए जाने चाहिए। ताकि दस्तावेजों में किसी प्रकार की हेराफेरी नहीं हो सके। वरना जिम्मेदार अपने बचाव के लिए मूल अभिलेखों को नष्ट कर सकते है। मूल दस्तावेजों में हेराफेरी की आशंका जताई जा रही है।

    फर्जीवाड़े पर PC करते कॉंग्रेस आरटीआई सेल 

    बाकी के आदिवासी 19 अन्य जिलों की भी हो जांच

    शिकायतों के बाद उक्त योजना से संबंधित सिर्फ मंडला जिले में कलेक्टर ने जांच कराई हैं जबकि जैविक खेती वर्मी कंपोस्ट की ये स्कीम मध्यप्रदेश के 20 आदिवासी बाहुल्य जिलों में संचालित की गई। जिसमें करोड़ों की राशि का गबन होना सामने पाया गया है। 19 अन्य आदिवासी बाहुल्य जिलों भी जांच होनी चाहिए। मगर अन्य जिलों में जांच नहीं की जा रही है। इतना ही नहीं संपूर्ण मंडला जिले में रेंडमली गांवों की अधिक से अधिक जांच होनी चाहिए जिसमें कई अन्य चौकाने वाले तथ्य सामने आ जाएगे। 

    आखिर जिम्मेदारों पर एफआईआर कब

    किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग एवं आदिम कल्याण विभाग के जिला एवं मुख्यालय के तात्कालीन अधिकारियों ने मिलकर कंेद्र सरकार की उक्त योजना में बिना केंद्र सरकार की अनुमति के योजना में बदलाव कर डाले। जो एक तरह से गंभीर अनियमितता है। इसके बाद पूरी योजना ही नियमों के विरूद्ध जमीनी स्तर पर उतार दी गई। मगर अभी तक दोनों विभागों के तात्कालीन अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाही नहीं हो पाई है। आखिर जिम्मेदारों पर एफआईआर कब होगी। इस बात का इंतजार प्रदेश के आदिवासी को है जिनके नाम पर करोड़ों रूपए की हेराफेरी की गई है।

    दिखाए थे जैविक खेती उत्पाद ब्रांडिंग के सपने

    जब ये योजना संचालित की गई थी तब आदिवासियों को आदिवासी जैविक उत्पादों की ब्रांडिंग कर बेचने के भी सपने दिखाए गए थे। उक्त योजना के करीब छह साल हो चुके है मगर अभी तक ना तो जैविक उत्पाद दिखाई दे रहे हैं और ना ही उनकी ब्रांडिंग हुई है। इतना जरूर है कि उक्त योजना से संबंधित 110 करोड़ राशि  की बंदरबांट जरूर हो चुकी है।   

    विधानसभा में भी उठ चुका है मुद्दा

    कांग्रेस के विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले भी इस मामले को विधानसभा में मुखरता से उठा चुके है। उन्होंने सिलसिलेवार इस योजना में हुए 110 करोड़ के घोटाले के बारे में विधानसभा में जानकारी रखी थी। मगर अभी तक दोषियों पर कोई कार्रवाही नहीं हो पाई है। 

    कांग्रेस उठा रहीं बारबार मुद्दा

    करोड़ों के इस फर्जीवाड़े को कांग्रेस बारबार उठा रही है। प्रदेश कांग्रेस सूचना का अधिकार प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष पुनीत टंडन और प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं प्रकोष्ठों के प्रभारी जे.पी. धनोपिया ने आज पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए संचालित जैविक खेती योजना में सौ करोड़ रूपयों से अधिक का भ्रष्टाचार का मामला बताया है। कांग्रेस की मांग है कि संपूर्ण मंडला जिले में रेन्डम तरीके से अधिक से अधिक ग्रामों की जांच कराई जाए। यह योजना प्रदेश के 20 आदिवासी बाहुल्य जिलों में संचालित की गई थी जाँच में जिस तरह का भ्रष्टाचार मंडला जिले में सामने आया है, उसी त अन्य 19 जिलों में भी भ्रष्टाचार होना संभावित है, इसलिये शेष 19 जिलों भी जाँच कराई जाए। योजना में मन चाहे बदलाव के लिए जिम्मेदारों पर एफआईआर की जाए। योजना में आदिवासी जैविक उत्पादों की ब्रांडिंग कर बेचने के सपने दिखाये गये थे किन्तु एक भी उपज को ब्रांडिंग नहीं हुई है पूरी राशि रूपये 110 करोड़ का बंदरबाट हुआ इसकी एफआईआर कराई जाए। आयोग के निर्देश पर जो जॉच हुई है उसमें पाई गई अनियमितताओं पर तत्काल एफआईआर कराई जाए।

    • आदिवासियों को जैविक खेती प्रशिक्षण के नाम पर 110 करोड़ का महाघोटाला
    • किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग एवं अनुसूचित जनजाति विभाग के अफसरानों ने किया गोलमाल

    • वर्मी कंपोस्ट यूनिट में फर्जीवाड़ा कर प्रोम खाद तथा जैविक कीटनाशक प्रदाय की  स्वीकृति

    • ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए मनमर्जी से कर दिया जैविक खेती प्रशिक्षण योजना में बदलाव
    • योजना भात सरकार एवं राज्य सरकार की, जिम्मेदारों अपने लाभ के लिए बदले नियम

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